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विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर विजय आई टी आई कॉलेज ने उपनिषद मिशन संस्था के साथ तकनीकी के छात्रों को साहित्य के संस्कार देने के लिए एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया

इस खबर के स्पोंसर है सॉफ्टनिक इंडिया, शाही मार्केट, गोलघर, गोरखपुर


ग़ाज़ीपुर। विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर विजय आई टी आई कॉलेज ने उपनिषद मिशन संस्था के साथ तकनीकी के छात्रों को साहित्य के संस्कार देने के लिए एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ कवयित्री शालिनी श्रीवास्तव ने मां सरस्वती की वंदना से किया। वरिष्ठ कवयित्री पूजा राय ने हिंदी पखवाड़े पर एक विचार प्रधान कविता पढ़कर छात्रों को तालियां बजाने पर विवश कर दिया, "हिंदी मे लिखना, पढ़ना कह लेना /जीवन में होने सा है/या शायद /जीवन ही होने सा है."

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी ने छात्रों की सराहना करते हुए कहा कि हम लोग ६० वर्षों से अधिक लोगों के बीच जाते हैं लेकिन आज नवयुवकों को कविता के लिए बैठा देखकर हिंदी भाषा और साहित्य के उज्ज्वल भविष्य का आभास हो रहा है। उन्होंने श्रीकृष्ण भगवान पर कविता पढ़ी, "आओ ब्रजराज फिर एक बार आज,/धरास्वर्ग- सा बना के जाओ असुर संहार के।"

युवा कवि आकाश विजय त्रिपाठी ने शानदार प्रस्तुति देते हुए एक गीत पढ़ा, और लोग झूम उठे, "खुद को समझाते रहे हम गीत ये गाते रहे , /हम वक्त के पाजेब की झंकार हैं।/चल रहा हूं पर कठिन है जिंदगी के रास्ते,/बेटियां बैठी कुंवारी ब्याहने के वास्ते /बाप बूढ़े मां बेचारी ,/अनवरत अभाव की कतार है।"

युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए शालिनी ने एक कविता पढ़ी, "मैं चाॅंद हूॅं पूर्णिमा का/ओझल अभी आकाश से/मैं सूर्य हूॅं आकाश का /जो ढक रहा है चाॅंद से/रात को उजियार दूँगा /विश्व को प्रकाश दूँगा /हो अमावस, या ग्रहण हो/मैं उगूँगा फिर उगूँगा ।" और उत्साह का संचार किया। 

ओज के कवि दिनेश चंद्र शर्मा जी ने "जिंदगी को गमगीन शाम मत बनने दो/जिंदगी भोर है सुबह की तरफ ढलने दो।" सुनाकर नवयुवकों की वाहवाही बटोरी।

व्यंग्य के धारदार कवि आशुतोष श्रीवास्तव ने "इस बार हमने भी हिंदी दिवस मनाया/ एक बड़ा ही अच्छा आयोजन रचाया/लोगों पर थोड़ा प्रभाव बने/इसलिए आमंत्रण पत्र अंग्रेजी मे छपवाया l" सुनाकर हिंदी की दुर्दशा पर सभी को सोचने के लिए विवश किया। 

युवाओं में बेरोजगारी की समस्या पर डॉ रामअवध कुशवाहा ने तंज कसा, "मैं बेरोजगार हूँ /मैं अमर हूँ/मुझे किसी शस्त्र शास्त्र से नहीं मारा जा सकता ।/मैं अमर हूँ,/मैं बेरोजगार हूँ ।"।

युवा कवि मनोज यादव 'बेफ़िक्र ग़ाज़ीपुरी' ने माँ पर लिखी हुई अपनी हृदयस्पर्शी कविता "शीत-ग्रीष्म-वर्षा ऋतु का आना/मेरे लिए तेरा ढाल बन जाना/तेरे आने से डर का डर जाना/जब भी बछड़े के लिए गाय रंभाती है/माँ! तेरी याद बहुत आती है" सुनाकर सभी से माँ के सम्मान का आह्वान किया। 

वरिष्ठ कवि हरिशंकर पांडे ने पिता पर मार्मिक कविता सुनाकर सभी को भावुक कर दिया, "तरक्की की सीढियां चढ़ रहे हैं सभी/ इस तरक्की में भी खो गया है पिता/ हाय बेबस पिता हाय बेबस पिता।"

संचालन करते हुए माधव कृष्ण ने वीरों की भूमि के सिमटने और अहिंसा का लबादा ओढ़कर कायरता को बढ़ावा देने वाली प्रवृत्ति पर चोट की, "भींगे संकल्पों में जान डाल डालकर/राख हटा अग्नि जला फूंक मार मारकर/अंधकार अट्टहास कर रहा चिढ़ा रहा /छोड़ नींद जाग सिंह जगा दे दहाड़कर/जब बंटे तभी कटे प्रकाश यह उछाल दो/वक्त आ गया है मित्र! बेड़ियां निकाल दो."

कवयित्री रिम्पू सिंह ने "नीरवता की स्याह चूनर ओढ़ यहां पर आती रजनी" सुनकर लोगों को प्रकृति के एक पक्ष से जोड़ा।

कार्यक्रम के अंत में कॉलेज के प्रिंसिपल गौतम कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Support India to emerge as a knowledge society by identifying and nurturing the inner strength of youth and rural people, so that India can be transformed into a developed nation..

Er. Shakti Shankar Singh (Chief Editor)

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