- by Javed Khan
- 2025-10-27 12:46:41
स्वदेशी इनक्रेडिबल न्यूज़
ये स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती डिप्लोमेटिक नम्बर की गाड़ी लेकर दिल्ली में कब से चल रहा था?
उस दिल्ली में जहाँ केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें हैं। कई ठो स्थानीय सरकारें नगर निगम के नाम पर हैं। थोक के भाव से आईएएस-आईपीएस हैं। उसी के पॉश कहे जाने वाले इलाके वसंत कुंज में इसका तथाकथित आश्रम है और वहीं इसका मैनेजमेंट कॉलेज है।
तबसे कितनी सरकारें आई-गईं? दिल्ली पुलिस के कितने प्रमुख बदले? किसी की नजर ही नहीं पड़ी इस पर? बीट के कॉन्स्टेबल से लेकर एसएचओ तक किसी का इतना आईक्यू नहीं था कि एक बार जरा आईटीओ वालों से ही बात कर ले? कल को अगर आतंकवादी ऐसे ही अपनी कार पर डिप्लोमेटिक नंबर लगाकर चले, तो सोचिए....
भारत की वामपंथी और झामपंथी दोनों तरह की सरकारों ने कुल मिलाकर पढ़ाई को एक बिना हर्रे-फिटकरी वाला मुनाफे धंधा समझते हुए इसे पहले सरकार के कब्जे से बाहर किया और फिर इस पर डकैतों को बैठा दिया। यही हाल चिकित्सा का हुआ है।
चंबल के महापुरुषों का पुनर्वास सबसे पहले शिक्षा क्षेत्र में ही किया गया। उन्होंने पहले पेरेंट्स को भरपूर लूटा। अब उससे भी मन न भरा तो बच्चियों की इज्जत पर डालने लगे।
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Er. Shakti Shankar Singh (Chief Editor)