- by Saourabh Kumar
- 2025-07-04 13:44:45
स्वदेशी इनक्रेडिबल न्यूज़
यह परंपरा 1950 के दशक में घाना के गा समुदाय में आरंभ हुई, विशेष रूप से तेश़ी क्षेत्र में। शुरुआत आदर्श रूप से सेठ काने क्वेई ने की, जब उन्होंने काकाओ रूपी पालकी बनाई, जिसका प्रयोग बाद में कफ़न के तौर पर किया गया ।
अंतिम संस्कार समारोह भी रंगीन और नृत्य-समृद्ध होते हैं—पारंपरिक संगीत, नृत्य और उत्सव के साथ।
कई बार ताबूत नर्तक (coffin dancers) भी होते हैं, जो कफ़न को ढोते हुए यात्रा में धार्मिक और सांस्कृतिक रंग भरते हैं ।
जब पीएम मोदी ने घाना का दौरा किया, तब मीडिया ने इस अनूठी परंपरा को उजागर किया और इसे "मृत्यु का उत्सव" के रूप में दर्शाया ।
यह दिखाता है कि यहाँ मौत को भी एक नई शुरुआत के रूप में देखा जाता है, जहाँ जीवन की यात्रा का रंगीत लेकिन सम्मानजनक अंत होता है।
तो घाना में केवल अंतिम संस्कार नहीं, बल्कि जीवन उत्सव होता है—जहाँ मछली, केकड़ा और विमान जैसे डिज़ाइनर कफ़न जीवन की कहानियाँ बयान करते हैं। यह दृष्टिकोण शोक की जगह सम्मान, रचनात्मकता और यादों का जश्न है।
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Er. Shakti Shankar Singh (Chief Editor)